समाज का कड़वा सच-5
भला कौओ को क्यों खिलाए मन में उपजा लालच भूल मातम को शोर मचाए सब कोई ढूंढे कागज मैं बैठा देख तमाशा भला क्यों यह नीर बहाऊ जीने का हर पल सोच रखा था मैं किसको बतलाऊ सब कुछ तो था तुम्हारी खातिर कौन तुम्हें बतलाए रिश्तेदार भी ले रहे मजा सब तुमको बरगलाये या खर्च किया उसने अपने खातिर जो गए तुम उसे भूल मौत के दिन न चार हुए कैसे चलाएं सूल...........
पूरी रात सोच में गुजारने के बाद जैसे-तैसे सुबह नींद लगने को हुई थी, कि दिन निकलने से पहले ही आस पड़ोस में होने वाली हलचल और इतनी तेज वार्तालाप में जैसे मुझे नींद से जगाने को विवश सा कर दिया।
मैंने खिड़की से झांककर देखा तो सभी रिश्तेदार मिलकर, घर का हर सामान निकाल कर बाहर रख रहे थे और फिर सब कुछ पुनः व्यवस्थित करने में व्यस्त थे।
देखने में पहली नजर में तो सबको यही लगाता कि सभी मिलकर घर की सफाई कर रहे थे, लेकिन असली मर्म तो मैं जानता था, क्योंकि मैं भली भांति जानता था कि कुछ दिन पहले उस घर के साफ सफाई के साथ मेरे मित्र ने अपना मनचाहा कलर से घर में रंग रोगन करवाया और जगह-जगह पर खदान में आए हुए नए मिस्त्री से कुछ अच्छे अच्छे चित्र भी बनवाए थे जो अत्यंत ही मनमोहक थे।
मुझे अच्छे से याद है कि जब उसने शाम की चाय के समय कहा था कि चलो अब बहुत हुआ आने वाले दो सालों तक, अब साफ सफाई का झंझट हटा..... अब कोई नया काम जब तक ना निकल पड़े तब तक रंग रोगन की कोई जरूरत नहीं, और ना ही किसी सामान को इधर-उधर करना है।
मैं यही यह भी जानता था कि उसका इशारा बड़े बेटे की शादी को लेकर था कि जब तक उसकी शादी सेट ना हो जाए तब तक और कोई नया काम नहीं करना,और इसलिए शायद उसने अफसरों से बात कर अपने क्वार्टर से ही लगी हुई खाली पड़ी जमीन जो उसकी बाउंड्री के भीतर थी, में एक अच्छे खासे तीन रूम का एक्सटेंशन के नाम पर कमरे इस तरह बनवाए थे, जिसमें आसानी से एक परिवार रह सकता था।
उसका मतलब साफ था कि उसने पूर्व नियोजित योजना से बना रखे थे,और इसलिए शायद वह बहुत दिनों से अफसरों के चक्कर भी लगा रहा था कि किसी तरह बड़े बेटे को कहीं नौकरी के जुगाड़ से लगा दे, तो शादी की कुछ बातें आगे बढ़ाएं और शायद इसी बात को लेकर थोड़ा चिंतित भी था।
मैं यह सब उसका परम मित्र और सरल शब्दों में यह कहुँ कि उसका सबसे बड़ा राजदार होने के कारण भली भांति जानता था, मुझे मन ही मन बड़ा क्रोध आ रहा था, कि सारे रिश्तेदार मिलकर ऐसा लग रहा था जैसे घर का तिनका तिनका बिखेर कर ही मानेंगे।
भला क्या बिगाड़ा था उसने इन सब का और क्या उसके परिवार में भी थोड़ा सा दिमाग नहीं था, जो उनको उनके बहकावे में आकर ऐसी हरकत करने लगे।
मैं साफ-साफ देख पा रहा था कि सभी रिश्तेदार सफाई के बहाने सन्दूक को खोलकर, मिलने वाले हर कागज को भली-भांति पढ़कर निराश हो वापस रख देते।
मुझे अब समझ में आ गया कि मेरा मित्र अपने हर कीमती कागज को मेरे पास किसी बैंक की तरह क्यों इतने विश्वास के साथ रखता था,शायद वह भली भांति इस परिस्थिति से अवगत था।
खैर जब सभी थक हार कर बैठ गए, तब अंततः बुजुर्गों की फटकार सुन सबने पुनः घर को व्यवस्थित किया, और ऐसे करते-करते सूर्य देवता अपनी चटक बिखरने लगे,
वे लोग अपने आप में इतने मशगुल थे, कि यह भी भूल गए की मृत्यु के बाद कम से कम दसक्रिया तक घर के बाहर भोजन रखने की परंपरा भी है, उनके चेहरे को देखकर ऐसा लगता था, जैसे वह मन ही मन मेरे मित्र को कोस रहे थे, कि जाने कहां सारे कागजात जमीन में गाड़ रखे हैं................
तभी एक कौवा उड़ कर उनकी दहलीज पर जा बैठा, और आवाज करने लगा..... तभी एक स्त्री फनफनाती हुई निकली और उसे उड़ा दिया,
लेकिन फिर वही कौवा उड़ कर मेरी दहलीज पर आया, जिसे ना जाने क्यों अपनी भीगी आंसुओं के साथ, अपने पिताजी की बात मान मैंने खाना और पानी दिया, और बड़े आश्चर्य की बात है कि वह कौवा पूरा खाना खाकर, पानी पी मेरी छत की मुंडेर पर जा उड़ गया।
मुझे एक पल उस कौवे की कम और अपनी आत्मा ज्यादा तृप्त लगी, और मैं अपने पिता जी के चरणों में जाकर बैठ गया। मेरे मुंह से अनायास ही निकल आया कि यह क्या है ?????क्या ऐसा भी घर होता है????
पिताजी ने सिर्फ हाँ में जवाब दिया और मेरे सिर पर हाथ घुमाते हुए मुझे समझाने लगे, लेकिन मेरा मन अभी भी उसको कौवे के आने और लौट जाने के बीच में अटका हुआ था.....क्या यह संभव है??????
क्रमशः..............
Mohammed urooj khan
11-Nov-2023 11:22 AM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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